कैथोलिक धर्म जगत को बड़ा झटका: पोप फ्रांसिस का 88 साल की उम्र में निधन, बीमारी से लंबे संघर्ष के बाद वेटिकन में ली अंतिम साँस; अमेरिकी उपराष्ट्रपति से एक दिन पहले ही हुई थी मुलाकात!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

कैथोलिक ईसाई समुदाय के लिए आज का दिन बेहद दर्दनाक और ऐतिहासिक है। दुनिया के 1.3 अरब कैथोलिक ईसाइयों के आध्यात्मिक नेता पोप फ्रांसिस का आज सुबह निधन हो गया। 88 वर्षीय पोप फ्रांसिस ने स्थानीय समयानुसार सुबह 7:35 बजे वेटिकन स्थित अपने आवास में अंतिम सांस ली। वेटिकन की आधिकारिक पुष्टि के बाद से ही दुनियाभर में शोक की लहर दौड़ गई है।

पिछले कुछ महीनों से पोप फ्रांसिस कई गंभीर बीमारियों से जूझ रहे थे। उन्हें 14 फरवरी को रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उनका निमोनिया, एनीमिया और फेफड़ों के इन्फेक्शन का इलाज चल रहा था। अस्पताल में इलाज के दौरान उनकी किडनी फेल होने के संकेत, और प्लेटलेट्स की भारी कमी ने स्थिति को और नाज़ुक बना दिया था। हालांकि, डॉक्टरों की टीम ने उन्हें 14 मार्च को डिस्चार्ज कर दिया था, लेकिन तबीयत लगातार गिरती रही। आश्चर्यजनक रूप से, निधन से एक दिन पहले ही अमेरिकी उपराष्ट्रपति जेडी वेंस उनसे मिलने पहुंचे थे।

पोप फ्रांसिस, जिनका असली नाम जॉर्ज मारियो बर्गोग्लियो था, इतिहास के पहले गैर-यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी पोप थे। उनका जन्म 17 दिसंबर 1936 को अर्जेंटीना के फ्लोरेंस शहर में हुआ था। उनके दादा-दादी तानाशाह मुसोलिनी के अत्याचारों से बचकर इटली से अर्जेंटीना आए थे। उन्होंने अपना जीवन समाजसेवा और शिक्षा में बिताया और “सोसाइटी ऑफ जीसस” (जेसुइट्स) से जुड़कर कैथोलिक धर्म की गहराई को आत्मसात किया।

2013 में रोमन कैथोलिक चर्च के 266वें पोप के रूप में चुने जाने के बाद से पोप फ्रांसिस ने कई ऐसे फैसले लिए, जिन्होंने उन्हें रूढ़िवादी सोच से अलग एक आधुनिक और संवेदनशील धर्मगुरु के रूप में दुनिया के सामने स्थापित किया। उन्होंने LGBTQ+ समुदाय को चर्च में स्वीकार करने का साहसिक बयान दिया था – “अगर कोई समलैंगिक व्यक्ति ईश्वर की खोज कर रहा है, तो मैं उसे जज करने वाला कौन होता हूं?”। इस बयान ने कैथोलिक समाज में हलचल मचा दी थी, लेकिन फ्रांसिस ने मानवीय संवेदना को धर्म से ऊपर रखा।

इसी तरह, तलाकशुदा लोगों को दोबारा शादी करने और कम्यूनियन (प्रभु भोज) में भाग लेने की धार्मिक मंजूरी देकर उन्होंने चर्च की सदियों पुरानी सख्त परंपराओं को चुनौती दी।

सबसे बड़ा और संवेदनशील मुद्दा रहा चर्च में बच्चों के यौन शोषण का। 2014 में पोप फ्रांसिस ने पहली बार सार्वजनिक रूप से इस भयावह अपराध को स्वीकार किया और माफी मांगी। उन्होंने कहा कि यह नैतिक मूल्यों की गहरी गिरावट है और इसके लिए जिम्मेदार पादरियों को कठोर सज़ा मिलनी चाहिए। यह पहली बार था जब किसी पोप ने इतने स्पष्ट शब्दों में यह अपराध स्वीकारा।

27 सितंबर 2023 को बेल्जियम की यात्रा के दौरान उन्होंने 15 यौन शोषण पीड़ितों से मुलाकात कर उन्हें सांत्वना दी और फिर से सार्वजनिक माफी मांगी। यह कदम वेटिकन की छवि को सुधारने के लिहाज से बेहद अहम माना गया।

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