मप्र विधानसभा में बड़ा खुलासा: संजय पाठक से जुड़ी तीन कंपनियों ने किया स्वीकृति से ज्यादा खनन, अवैध खनन से सरकार को 1000 करोड़ का नुकसान; प्रश्नकाल में CM यादव ने बताई पूरी जानकारी!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश की राजनीति और खनन उद्योग में उस वक्त हलचल मच गई जब विधानसभा के प्रश्नकाल के दौरान मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की ओर से एक लिखित जवाब में खुलासा हुआ कि भाजपा विधायक संजय पाठक से जुड़ी तीन खनन कंपनियों पर 443 करोड़ रुपये से अधिक की वसूली की जा रही है। ये कंपनियाँ—आनंद माइनिंग कॉर्पोरेशन, निर्मला मिनरल्स और पैसिफिक एक्सपोर्ट—पर आरोप है कि उन्होंने जबलपुर जिले के सिहोरा क्षेत्र में स्वीकृत मात्रा से अधिक खनिज का खनन किया है।

यह मामला तब सार्वजनिक हुआ जब कांग्रेस विधायकों अभिजीत शाह और हेमंत कटारे ने विधानसभा में एक सवाल के जरिए सरकार से पूछा कि आशुतोष मनु दीक्षित द्वारा ईओडब्ल्यू (आर्थिक अपराध अन्वेषण शाखा) में की गई शिकायत पर क्या कार्रवाई हुई है। शिकायत 31 जनवरी 2025 को दर्ज की गई थी, जिसमें खनन में अनियमितताओं का गंभीर आरोप लगाया गया था।

मुख्यमंत्री द्वारा प्रस्तुत जवाब के अनुसार, शिकायत के बाद 23 अप्रैल 2025 को खनिज साधन विभाग द्वारा एक जांच समिति गठित की गई थी। इस जांच दल ने लगभग डेढ़ महीने की जांच के बाद 6 जून 2025 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी। रिपोर्ट में यह स्पष्ट रूप से सामने आया कि तीनों खनन कंपनियों ने स्वीकृति से कहीं अधिक खनन किया और राज्य सरकार को रॉयल्टी या टैक्स के रूप में लगभग 1000 करोड़ रुपये का नुकसान पहुंचाया। जांच रिपोर्ट के अनुसार, इन कंपनियों से फिलहाल 443 करोड़ 4 लाख 86 हजार 890 रुपये की वसूली की जाएगी। यह राशि जीएसटी जोड़ने के बाद और अधिक बढ़ सकती है।

सरकार ने यह भी बताया कि उपग्रह डाटा और भारतीय खनन ब्यूरो (IBM) की रिपोर्टों के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला गया है कि कंपनियों ने अवैध रूप से खनिज उत्खनन किया। रिपोर्ट के अनुसार, कुछ खदानों में स्वीकृति से कई गुना अधिक उत्पादन दर्ज किया गया, जिससे पर्यावरणीय और आर्थिक दोनों ही दृष्टियों से भारी नुकसान हुआ।

वहीं दूसरी ओर, कंपनियों ने जांच रिपोर्ट को सिरे से खारिज किया है। आनंद माइनिंग कॉर्पोरेशन और निर्मला मिनरल्स की ओर से जारी एक संयुक्त स्पष्टीकरण में कहा गया कि वे पिछले 70 वर्षों से खनिज व्यापार में सक्रिय हैं और उन्हें कभी भी टैक्स चोरी या अवैध खनन के आरोप में नहीं घसीटा गया। उनका कहना है कि जांच दल ने किसी भी खदान का स्थलीय निरीक्षण नहीं किया और न ही कंपनियों के किसी प्रतिनिधि से संवाद किया गया। रिपोर्ट केवल अनुमानों और उपग्रह आधारित आकलनों पर आधारित है।

कंपनियों ने यह भी दावा किया कि इसी विषय पर पहले भी एक जांच हुई थी, जिसमें अदालत ने सभी आरोपों को खारिज करते हुए विभागीय आदेश को रद्द कर दिया था। उन्होंने यह भी बताया कि उन्होंने इस बार भी खनिज विभाग के प्रमुख सचिव को पत्र लिखकर व्यक्तिगत सुनवाई का अवसर मांगा है, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं मिला है।

इस पूरे मामले ने न सिर्फ मध्यप्रदेश की राजनीति में नई बहस को जन्म दिया है, बल्कि यह भी सवाल खड़े कर दिए हैं कि क्या सरकार अपने ही पार्टी के विधायक से जुड़ी कंपनियों पर निष्पक्ष कार्रवाई कर पाएगी? कांग्रेस ने भी मामले की सीबीआई जांच की मांग की है और कहा है कि जब तक जांच स्वतंत्र एजेंसी से नहीं करवाई जाती, तब तक सच्चाई सामने नहीं आएगी।

जांच रिपोर्ट के बाद अब यह देखना दिलचस्प होगा कि राज्य सरकार इन कंपनियों से वसूली कैसे सुनिश्चित करती है, और क्या आगे इस मामले में कोई आपराधिक मामला दर्ज किया जाएगा या नहीं। फिलहाल, सरकार ने जांच रिपोर्ट के आधार पर कार्रवाई शुरू कर दी है, लेकिन मामला अभी पूरी तरह शांत होने वाला नहीं है।

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