जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
देश की आज़ादी के बाद पहली बार जातीय जनगणना को लेकर केंद्र सरकार ने बड़ा कदम उठाया है। गृह मंत्रालय ने सोमवार को नोटिफिकेशन जारी करते हुए जनगणना प्रक्रिया की आधिकारिक घोषणा कर दी है, जिसके तहत देशभर में जातीय जनगणना दो चरणों में की जाएगी। पहले चरण की शुरुआत 1 अक्टूबर 2026 से होगी, जिसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख जैसे चार पहाड़ी राज्यों को शामिल किया गया है। इसके बाद 1 मार्च 2027 से दूसरे चरण की शुरुआत होगी, जिसमें देश के बाकी राज्यों में जाति आधारित जनगणना कराई जाएगी।
यह फैसला ऐसे समय पर आया है जब विपक्ष लगातार जातिगत जनगणना की मांग करता आ रहा था। खासकर कांग्रेस, राजद, सपा, जदयू, और अन्य क्षेत्रीय दलों ने इस मुद्दे को लगातार चुनावी एजेंडे का हिस्सा बनाया है। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2023 से इस पर खुलकर बयान दिए हैं और देश-विदेश के मंचों से जातिगत जनगणना की माँग करते रहे हैं।
गौरतलब है कि देश में पिछली बार 2011 में जनगणना हुई थी, जिसे हर 10 साल में एक बार किया जाता है। 2021 की जनगणना कोरोना महामारी के कारण टाल दी गई थी। 2011 में सामाजिक-आर्थिक जाति जनगणना (SECC) करवाई गई थी, लेकिन इसके जातिगत आंकड़े आज तक सार्वजनिक नहीं किए गए। उस सर्वेक्षण का काम ग्रामीण विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने किया था, लेकिन सिर्फ SC-ST से जुड़े आंकड़े ही जारी किए गए, OBC और बाकी जातियों के डेटा आज भी अघोषित हैं।
2011 तक जनगणना फॉर्म में 29 कॉलम होते थे, जिनमें नाम, लिंग, पता, पेशा, शिक्षा और SC/ST कैटेगरी से संबंधित जानकारी होती थी। अब जातीय जनगणना को शामिल करने के लिए नए कॉलम जोड़े जाएंगे, जिससे OBC समेत सभी जातियों की संपूर्ण गणना संभव हो सकेगी।
हालांकि यह प्रक्रिया सिर्फ सर्वे तक सीमित नहीं है। जनगणना एक्ट 1948 में अभी तक केवल SC और ST की गिनती का प्रावधान है। OBC जातियों की गिनती के लिए कानून में संशोधन की जरूरत होगी। रिपोर्ट्स के मुताबिक देश में OBC की 2,650 जातियां, SC की 1,270 जातियां और ST की 748 जातियां मौजूद हैं। 2011 के अनुसार, SC की आबादी 16.6% और ST की 8.6% थी, जबकि OBC की वास्तविक संख्या अज्ञात है।
केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि कांग्रेस ने दशकों तक इस मांग को नजरअंदाज किया। उन्होंने कहा कि 1947 से आज तक कांग्रेस की सरकारों ने कभी जातिगत जनगणना नहीं करवाई। 2010 में डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने मंत्रियों का समूह बनाकर विचार किया, लेकिन आखिरकार निर्णय नहीं लिया गया।
जातिगत आरक्षण की पृष्ठभूमि में देखा जाए तो इसकी शुरुआत 1979 के मंडल कमीशन से होती है, जब प्रधानमंत्री वी.पी. सिंह ने OBC आरक्षण लागू किया। इसके बाद जातियों की संख्या के आधार पर आरक्षण की मांग तेज़ हो गई। कांशीराम, लालू यादव, मुलायम सिंह यादव जैसे नेताओं ने इसे आंदोलन का रूप दिया। 2010 में भी संसद में यह मांग ज़ोर पकड़ चुकी थी, लेकिन कांग्रेस सरकार इससे पीछे हट गई।
आज जातीय जनगणना सिर्फ सामाजिक न्याय की बात नहीं रह गई है, यह राजनीतिक और सामाजिक समानता का प्रतीक बन चुकी है। केंद्र सरकार द्वारा इसे आधिकारिक रूप से लागू करने की घोषणा, न केवल इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, बल्कि यह नीतिगत योजना, आरक्षण और संसाधन वितरण में पारदर्शिता लाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।