जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
सावन का महीना आते ही पूरे देश में शिवभक्तों की आस्था का अद्भुत नज़ारा देखने को मिलता है। भगवान शिव को भोलेनाथ कहा जाता है, क्योंकि वे अपने भक्तों की सरल प्रार्थना से भी जल्दी प्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन क्या आपने कभी गहराई से सोचा है कि आखिर क्यों भगवान शिव को बेलपत्र, भांग, धतूरा और आक के फूल चढ़ाए जाते हैं? इसका उत्तर सिर्फ धार्मिक परंपरा में ही नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और आयुर्वेद की दृष्टि से भी बेहद महत्वपूर्ण है।
दरअसल, यह परंपरा एक गहरे पौराणिक प्रसंग से जुड़ी है। शिव पुराण और भगवती पुराण में उल्लेख आता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब अमृत की खोज में देवता और असुर मंथन कर रहे थे, तब सबसे पहले ‘हलाहल’ नामक भीषण विष समुद्र से निकला। यह ज़हर इतना घातक था कि तीनों लोकों में तबाही मचा सकता था। जब सभी देवता और असुर इससे भयभीत हो गए, तब भगवान शिव ने संसार की रक्षा के लिए उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। विष के प्रभाव से उनके गले का रंग नीला हो गया और तभी से उन्हें ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा।
भगवती पुराण में यह भी वर्णित है कि जब महादेव ने इस विष को अपने भीतर रोक रखा था, तब मां पार्वती ने उनका मस्तिष्क ठंडा रखने और विष के प्रभाव को कम करने के लिए उनके ऊपर भांग, धतूरा, आक के फूल और बेलपत्रों का लेप लगाया। इसके साथ देवी-देवताओं ने शिवजी के मस्तक पर औषधीय गुणों वाले जल का भी अभिषेक किया। इस प्रक्रिया ने महादेव को विष के दुष्प्रभाव से बचाया। तभी से भांग, धतूरा, आक, बेलपत्र और जल, भगवान शिव की पूजा में अनिवार्य रूप से शामिल हो गए।
लेकिन इस कथा के पीछे एक वैज्ञानिक व स्वास्थ्य से जुड़ा संकेत भी छिपा है। भांग, आक, धतूरा आदि औषधीय पौधे हैं जिनका नियंत्रित मात्रा में उपयोग कई बीमारियों में फायदेमंद माना जाता है, लेकिन इनका दुरुपयोग स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक है। इसलिए शिवजी ने इन्हें स्वयं स्वीकार किया, ताकि लोग इन्हें सामान्य भोजन या पेय के रूप में सेवन करने से बचें। शिव का यह प्रतीकात्मक संदेश यह भी है कि समाज जिन चीजों का त्याग करता है, वे उन्हें अपने श्रृंगार में शामिल कर लेते हैं ताकि लोग उनके सेवन से दूर रहें।
इसके अलावा बेलपत्र भी औषधीय गुणों से भरपूर होता है। आयुर्वेद के अनुसार यह पेट और पाचन तंत्र के लिए लाभकारी है। इसी तरह भांग में शीतलता और ताजगी प्रदान करने वाला तत्व होता है। आक और धतूरा भी पारंपरिक औषधियों में नियंत्रित मात्रा में प्रयुक्त होते आए हैं।
इसलिए सावन में शिवलिंग पर जल, बेलपत्र, भांग, धतूरा और आक चढ़ाने की परंपरा न केवल धार्मिक श्रद्धा से जुड़ी है, बल्कि मानव शरीर और मस्तिष्क को प्राकृतिक चिकित्सा की ओर प्रेरित करने वाली भी है। यह परंपरा हमें यह भी सिखाती है कि प्रकृति में विष के बीच भी अमृत छिपा है, बस समझदारी से उसका उपयोग किया जाना चाहिए।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार, भगवान शिव को चढ़ाए जाने वाले ये सभी पदार्थ शरीर के ताप को कम करने, मन को शांत करने और मानसिक तनाव को घटाने की क्षमता रखते हैं। यही वजह है कि सावन का महीना सिर्फ भक्ति ही नहीं, बल्कि प्राकृतिक चिकित्सा व आयुर्वेद की दृष्टि से भी बेहद अहम है।
इस प्रकार, भोलेनाथ की पूजा में भांग, धतूरा और बेलपत्र का विशेष महत्व पौराणिक गाथाओं, प्राकृतिक चिकित्सा और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से गहराई से जुड़ा है। सावन में शिव उपासना के साथ-साथ यह हमारे लिए प्रकृति के गुणों को समझने और उनका सम्मान करने का भी अवसर है।