जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
जातीय हिंसा से बुरी तरह झुलसे पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में अब एक नई राजनीतिक हलचल शुरू हो गई है। बीते डेढ़ साल से कुकी और मैतेई समुदाय के बीच जारी खूनी संघर्ष के बीच राज्य में एक बार फिर नई सरकार के गठन की कवायद तेज़ हो गई है। 30 मई को मणिपुर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के 27 विधायकों की अहम बैठक हुई, जिसमें मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को जानबूझकर दरकिनार किया गया। बैठक में पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सत्यव्रत सिंह को भी नहीं बुलाया गया, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि अब भाजपा में शीर्ष स्तर पर बड़ा बदलाव होने वाला है।
इस बैठक में न केवल बीरेन सिंह के खिलाफ विद्रोह करने वाले विधायक शामिल हुए, बल्कि वे भी विधायक मौजूद थे जिन्होंने बीते 9 फरवरी को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने तक उनका साथ दिया था। भाजपा के एक वरिष्ठ विधायक ने खुलासा किया कि बैठक में मुख्यमंत्री को आमंत्रित नहीं किया गया था। इससे यह साफ हो गया कि पार्टी के भीतर ही नेतृत्व को लेकर गहरी खाई बन चुकी है और अब नए चेहरे को सामने लाने की तैयारियां जोरों पर हैं।
बैठक के बाद विधायकों ने सामूहिक रूप से बयान जारी कर कहा कि व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं को किनारे रखकर सरकार गठन की दिशा में आगे बढ़ने का संकल्प लिया गया है। मणिपुर विधानसभा में कुल 60 सीटें हैं, जिनमें से वर्तमान में 59 विधायक सक्रिय हैं। भाजपा के पास 37 विधायक हैं, लेकिन इनमें से सात विधायक कुकी-जो समुदाय से आते हैं और उन्होंने इस बैठक से दूरी बनाए रखी।
इससे पहले 28 मई को एनडीए के 10 विधायक इंफाल स्थित राजभवन पहुंचे और राज्यपाल अजय भल्ला से मुलाकात कर सरकार बनाने का दावा पेश किया। इन विधायकों में 8 भाजपा, एक नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और एक निर्दलीय विधायक शामिल थे। इन नेताओं ने राज्यपाल को आश्वस्त किया कि कांग्रेस को छोड़कर कुल 44 विधायक सरकार बनाने के लिए तैयार हैं।
भाजपा विधायक थोकचोम राधेश्याम ने मुलाकात के बाद स्पष्ट किया कि मणिपुर में एनडीए के पास पूर्ण बहुमत है और 15 जून तक नई सरकार के गठन की संभावना जताई जा रही है। विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 31 है और एनडीए गठबंधन के पास 44 विधायक हैं, जिनमें 32 मैतेई, 3 मणिपुरी मुस्लिम और 9 नगा विधायक शामिल हैं।
वर्तमान में मणिपुर राष्ट्रपति शासन के अधीन है, जिसे 13 फरवरी को विधानसभा निलंबित होने के बाद लागू किया गया था। इससे पहले 9 फरवरी को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। उन पर आरोप था कि वे राज्य में 3 मई 2023 से भड़की हिंसा को नियंत्रित करने में नाकाम रहे।
गौरतलब है कि मणिपुर में कुकी और मैतेई समुदाय के बीच दो वर्षों से अधिक समय से चल रही हिंसा में अब तक 300 से ज्यादा लोगों की जान जा चुकी है। 1500 से अधिक लोग घायल हुए हैं और करीब 70,000 लोग अपने घर-बार छोड़कर राहत शिविरों में शरण लेने को मजबूर हो चुके हैं। 6,000 से अधिक एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। इस हिंसा ने मणिपुर की सामाजिक और राजनीतिक स्थिरता को गहरे संकट में डाल दिया है।