गंभीर डेम में 788 और साहेबखेड़ी में 70 MCFT पानी, उण्डासा तालाब खाली

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उज्जैन। हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी शहर को पेयजल संकट की स्थिति से जूझना पड़ेगा। इसके पीछे कारण अनेक हैं लेकिन मुख्य कारण पीएचई अफसर जलप्रदाय स्त्रोतों में लगातार कम हो रहे पानी को बता रहे हैं। अफसरों के अनुसार गंभीर डेम में 788 एमसीएफटी पानी ही बचा है जिसका उपयोग जलप्रदाय के लिये मुख्य रूप से किया जाता है।

पीएचई द्वारा शहर में जलप्रदाय के लिये मुख्य रूप से गंभीर डेम से पानी लिया जाता है। इसके अलावा दूसरा विकल्प साहेबखेड़ी तालाब है। इस तालाब की केपेसिटी 441 एमसीएफटी पानी स्टोर की है। वर्तमान में साहेबखेड़ी में मात्र 70 एमसीएफटी पानी स्टोर है। उण्डासा तालाब खाली हो चुका है। चौथा विकल्प शिप्रा नदी है, लेकिन इसमें कान्ह का दूषित पानी मिलने के कारण जलप्रदाय के उपयोग में नहीं लिया जाता। उक्त चार विकल्पों का आंकलन करने के बाद पीएचई अफसरों ने शहर में एक दिन छोड़कर जलप्रदाय का निर्णय लिया है।

गंभीर डेम 1992 में तैयार किया गया था। इसमें पानी स्टोर की कैपेसिटी 2250 एमसीएफटी है। उस समय के मान से जनप्रतिनिधियों व अफसरों ने दावा किया था कि गंभीर डेम बनने के बाद शहर में कभी पेयजल संकट की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी, हालांकि 32 साल बीतने के बाद अब शहर में क्षेत्रफल दो गुना और आबादी डेढ़ गुना बढ़ चुकी है। यही कारण है कि अब गंभीर डेम में स्टोर पानी से पूरे वर्ष जलप्रदाय नहीं हो पाता और पीएचई को गर्मी शुरू होते ही शहर में एक दिन छोड़कर जलप्रदाय करना पड़ता है।

पिछले 5 से 10 वर्षों में शहर के क्षेत्रफल का आंकलन किया जाये तो शहर का चारों ओर विस्तार तो तेजी से हुआ है वहीं पेयजल सप्लाय के लिये बनाई गई टंकियों की संख्या भी बढ़कर 44 तक पहुंच गई है, लेकिन पेयजल स्त्रोत के नाम पर गंभीर, उण्डासा, साहेबखेड़ी और शिप्रा नदी ही हैं जिनके विस्तार या कैपेसिटी बढ़ाने पर किसी भी पीएचई अफसर या जनप्रतिनिधि ने आज तक कोई योजना नहीं बनाई।

फिलहाल पीएचई द्वारा गऊघाट जलयंत्रालय से नर्मदा का पानी पेयजल सप्लाय के उपयोग में कुछ मात्रा में लिया जा रहा है। इस पानी को उपयोग में लेने से पहले अफसरों ने त्रिवेणी स्थित कान्ह पर मिट्टी का अस्थायी स्टापडेम बनाया, त्रिवेणी पाले से लेकर रामघाट तक कान्ह का दूषित पानी बहाया तब कहीं जाकर पाइप लाइन से नर्मदा का पानी लाकर गऊघाट पर स्टोर किया गया लेकिन वर्तमान स्थिति यह है कि कान्ह का पानी किसी भी समय मिट्टी के स्टापडेम से ओवरफ्लो होकर त्रिवेणी स्टापडेम तक और यहां से गऊघाट तक पहुंच सकता है। ऐसी स्थिति में गऊघाट का पानी फिर दूषित हो जायेगा और जलप्रदाय के उपयोग के योग्य भी नहीं बचेगा।

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