962 नदियों का मायका मध्यप्रदेश: उद्गम स्थल पर पानी की कमी से उठी चिंता, सरकार ने बनाई ठोस योजना; मंत्री पटेल बोले – नदियों की रक्षा सिर्फ बांध से नहीं, जंगल और जलस्त्रोत भी हैं जरूरी!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

मध्यप्रदेश को “नदियों का मायका” कहा जाता है, क्योंकि यहां लगभग 962 छोटी-बड़ी नदियों के उद्गम स्थल मौजूद हैं। इन नदियों के संरक्षण और जलस्तर को बनाए रखने को लेकर सरकार गंभीर है। पंचायत और जलसंसाधन मंत्री प्रहलाद सिंह पटेल पिछले दो वर्षों से प्रदेश की नदियों के उद्गम स्थलों की यात्रा कर रहे हैं और उन्हें इस दौरान कई चुनौतियों और अनुभवों का सामना करना पड़ा।

मंत्री पटेल ने अब तक 32 नदियों के उद्गम स्थलों की यात्रा पूरी की है, लेकिन इनमें से केवल सात नदियों के उद्गम स्थल पर पानी का अस्तित्व मिला। इस अनुभव ने उन्हें नदियों के संरक्षण के लिए अलग रणनीति बनाने की प्रेरणा दी। पटेल का मानना है कि नदियों के उद्गम स्थलों की यात्रा के बिना जल संरक्षण का कोई भी प्रयास अधूरा रहेगा।

उनके अनुसार, जल संरक्षण अभियान के अंतर्गत नए जल स्त्रोत विकसित करना और पुराने जल स्रोतों की क्षमता बढ़ाना मुख्य उद्देश्य होना चाहिए। पुराने स्त्रोतों में कुएं, बावड़ी, तालाब और नदियां शामिल हैं, जिनकी सफाई और संरक्षण पंचायत स्तर पर किया जा सकता है। इस दिशा में उनका अनुभव दशकों पुराना है और मंत्री होने के नाते उन्होंने इसे राज्य स्तर पर लागू करने का संकल्प लिया।

पौधरोपण पर रोक का निर्णय भी इसी सोच से लिया गया। उन्होंने बताया कि बिना उचित देखभाल और पानी की व्यवस्था के पौधों को बचाना संभव नहीं है। इसलिए, सरकार ने पौधरोपण अभियान के लिए समय बढ़ाया है और इस दौरान नियमित निगरानी और बैठकें आयोजित की जा रही हैं।

नर्मदा परिक्रमा में अपने अनुभव साझा करते हुए मंत्री पटेल ने बताया कि नदी का संगम और उद्गम स्थलों पर जीवन की ऊर्जा अत्यधिक होती है। उन्होंने यह भी अनुभव साझा किया कि कई बार सूखे नालों और शुष्क उद्गम स्थलों को देखकर उन्हें निराशा हुई, लेकिन स्थानीय वनवासियों की परंपराएं और उनकी जल संरक्षण की समझ प्रेरक रही। ये अनुभव उन्हें यह सिखाते हैं कि नदियों की रक्षा केवल बड़े बांध या संरचनाओं से नहीं, बल्कि प्राकृतिक प्रक्रियाओं और पर्यावरणीय संतुलन से भी संभव है।

नरसिंहपुर जिले में वेतनिक जलस्तर और नदियों के सूखने के उदाहरण मंत्री पटेल ने साझा किए। उनके अनुसार, ट्यूबवैल की अधिकता और वृक्षों की कटाई से जलस्तर में गिरावट आई है। यह साफ संदेश देता है कि प्राकृतिक जल स्रोतों और वनस्पति की रक्षा अत्यंत आवश्यक है। मंत्री पटेल ने जोर दिया कि छोटे-छोटे उद्गम स्थल और उनमें लगे वृक्ष आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवनदायिनी हैं।

उनके अनुभवों में यह भी सामने आया कि स्थानीय लोग उद्गम स्थलों की रक्षा और उनके आसपास की परंपराओं को निभाते हैं। जैसे शक्कर नदी के उद्गम स्थल पर हर शुक्रवार को दीपक जलाने की परंपरा है। यह देखकर उन्हें एहसास हुआ कि केवल सरकारी योजनाएं ही नहीं, बल्कि स्थानीय संस्कृति और परंपराएं भी जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

मंत्री पटेल के अनुसार, जब नए वृक्ष लगाए जाएं, तो तीन साल तक उनकी देखभाल की आवश्यकता होती है। सातवें वर्ष के बाद ये वृक्ष स्वाभाविक रूप से जल और जीवन प्रदान करेंगे, जिससे पीढ़ियों तक पानी, फल, छाया और वातावरण की गुणवत्ता सुनिश्चित रहेगी। उन्होंने यह भी बताया कि वेद और शास्त्रों में प्राकृतिक जल स्त्रोतों और वृक्षों का महत्व स्पष्ट रूप से उल्लेखित है।

सरकार अब नदियों के संरक्षण के लिए अलग रणनीति तैयार कर रही है। इसमें नदियों के उद्गम स्थलों की पहचान, प्राकृतिक जल संरक्षण, वृक्षारोपण, ट्यूबवैल की संतुलित व्यवस्था और स्थानीय समुदायों की भागीदारी शामिल है। यह कदम न केवल मध्यप्रदेश की नदियों को बारहमासी बनाएगा, बल्कि आने वाली पीढ़ियों के लिए जल संरक्षण की दिशा में एक ठोस पहल भी साबित होगा।

मंत्री प्रहलाद पटेल की यह यात्रा और अनुभव यह संदेश देते हैं कि प्राकृतिक जल स्त्रोतों की सुरक्षा और संरक्षण के लिए स्थायी योजना, स्थानीय समुदाय की भागीदारी और प्राकृतिक संतुलन बनाए रखना अनिवार्य है। उनका यह प्रयास मध्यप्रदेश में नदियों के संरक्षण और जल सुरक्षा के क्षेत्र में एक मिसाल के रूप में सामने आया है।

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