जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% आरक्षण देने का मुद्दा एक बार फिर सियासत और सुर्खियों के केंद्र में है। गुरुवार को मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में सीएम हाउस में हुई सर्वदलीय बैठक में सभी दल 27% आरक्षण के समर्थन में एकजुट दिखे। हालांकि, बैठक के बाद श्रेय की लड़ाई भी तेज हो गई। कांग्रेस ने कहा कि “लड़ाई हमने लड़ी थी”, जबकि भाजपा का दावा है कि “सीएम पहले से ही निर्णय के पक्ष में थे।”
मुख्यमंत्री बोले – सभी चाहते हैं बच्चों को लाभ मिले
बैठक के बाद मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने कहा –
“हम सब एकमत हैं कि ओबीसी समाज को उसका हक मिलना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन मामले पर जल्द फैसला आए, ताकि आयु सीमा खत्म होने से पहले बच्चों को लाभ मिल सके। अभी 14% क्लियर है और 13% होल्ड पर है।”
कांग्रेस का हमला – “सरकार पुराने घर में नारियल फोड़ रही”
बैठक के बाद कांग्रेस नेताओं ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर भाजपा पर निशाना साधा।
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जीतू पटवारी (प्रदेश अध्यक्ष): सरकार ने पाप किया और अब छुपा रही है। भाजपा, शिवराज और मोहन यादव के कारण आरक्षण रुका। 1 लाख से अधिक अभ्यर्थी प्रभावित हुए हैं।
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उमंग सिंघार (नेता प्रतिपक्ष): सरकार कथनी-करनी में अलग है। कांग्रेस और भाजपा के वकील कोर्ट में साथ बैठने को तैयार हैं। पर सरकार कांग्रेस द्वारा बनाए घर में नारियल फोड़कर श्रेय लेना चाहती है।
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अरुण यादव (पूर्व केंद्रीय मंत्री): 2003 से 2025 तक भाजपा की चार सरकारें रहीं, किसी ने ध्यान नहीं दिया। 2019 में कांग्रेस ने 27% आरक्षण लागू किया था। अब जिम्मेदारी सरकार की है कि इसे दिलाए।
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अशोक सिंह (राज्यसभा सांसद): सहमति बनी है कि कोर्ट में सभी दल मिलकर पक्ष रखेंगे।
पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी सोशल मीडिया पर सरकार पर निशाना साधते हुए लिखा – “27% आरक्षण कांग्रेस सरकार ने लागू किया था। भाजपा अब जनता को गुमराह करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुला रही है।”
भाजपा का पक्ष
भाजपा नेताओं का कहना है कि सीएम पहले ही OBC आरक्षण लागू करने के पक्ष में थे। अब सभी दल एकजुट होकर सुप्रीम कोर्ट में पक्ष रखेंगे।
आप और सपा की मांग
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AAP – रानी अग्रवाल ने कहा कि OBC का हक पहले से लागू था, इसे तुरंत बहाल किया जाए।
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SP – प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मनोज यादव ने कहा कि OBC की आबादी 52% है, आरक्षण भी उतना ही होना चाहिए।
सर्वदलीय बैठक में पारित संकल्प
सीएम हाउस स्थित समन्वय भवन में हुई बैठक में यह संकल्प पारित किया गया कि –
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सभी दल ओबीसी समाज को लोक सेवाओं में 27% आरक्षण दिलाने के लिए कटिबद्ध हैं।
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न्यायालय के आदेशों की वजह से 13% आरक्षण रुका हुआ है, उसे लागू कराने के लिए सभी दल मिलकर प्रयास करेंगे।
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नियुक्ति आदेश से वंचित अभ्यर्थियों को उनका हक दिलाने की कोशिश की जाएगी।
सुप्रीम कोर्ट और MPPSC की भूमिका
OBC आरक्षण मामले में सबसे बड़ी पेचीदगी भर्ती प्रक्रिया से जुड़ी रही। MPPSC और शिक्षक भर्ती समेत कई चयन प्रक्रियाएं कोर्ट में अटक गईं।
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MPPSC ने हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में नया आवेदन दिया, जिसमें पहले दाखिल हलफनामे में हुई त्रुटियों को सुधारने की अनुमति मांगी गई।
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आयोग ने कोर्ट से बिना शर्त माफी मांगते हुए नया एफिडेविट स्वीकार करने की अपील की।
बता दें, 2019 से अब तक करीब 1 लाख से ज्यादा उम्मीदवार प्रभावित हुए हैं। कई चयनित अभ्यर्थियों को सिर्फ इसलिए नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया क्योंकि मामला सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग है। जबकि कोर्ट कई बार कह चुका है कि सरकार चाहें तो नियुक्तियां जारी कर सकती है। अब निगाहें सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई पर हैं। 27% OBC आरक्षण को लेकर सभी राजनीतिक दल एकमत हैं, लेकिन श्रेय लेने की होड़ जारी है।
2019 से अब तक की कहानी – कैसे अटका 27% ओबीसी आरक्षण?
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2019: कमलनाथ सरकार ने 14% से बढ़ाकर 27% ओबीसी आरक्षण लागू किया।
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2020: हाईकोर्ट ने आदेश पर रोक लगाई और कहा कि 50% की सीमा से अधिक नहीं हो सकता।
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2021–23: कोर्ट में सुनवाई, सरकार की ओर से नए-नए फ़ॉर्मूले पेश हुए।
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2024: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कानून में कोई बाधा नहीं, राज्य सरकार चाहें तो नियुक्तियां कर सकती हैं।
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2025: मामला अब सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के पास लंबित है।