जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
बालाघाट जिले में कांग्रेस की राजनीति एक बार फिर से गरमा गई है। संगठन सृजन अभियान के तहत हाल ही में घोषित सूची में बैहर विधानसभा क्षेत्र से विधायक संजय उइके को दोबारा जिला अध्यक्ष नियुक्त किए जाने पर विवाद खड़ा हो गया है। कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह फैसला ज़मीनी हकीकत और पार्टी कार्यकर्ताओं की भावनाओं को दरकिनार कर लिया गया है।
श्रद्धांजलि सभा बनी विरोध का मंच
रविवार को आयोजित दिवंगत कांग्रेस नेताओं की श्रद्धांजलि सभा में यह असंतोष खुलकर सामने आया। कार्यक्रम में मौजूद कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर संजय उइके की नियुक्ति का विरोध जताया और संगठन की पारदर्शिता पर सवाल उठाए। उनका कहना था कि इस तरह के थोपे गए निर्णय से जमीनी कार्यकर्ताओं का मनोबल टूट रहा है।
“प्रक्रिया बेमानी साबित हुई”
पूर्व विधानसभा और जिला पंचायत सदस्य उम्मेद लिल्हारे ने भी इस विवाद पर खुलकर नाराज़गी जताई। उन्होंने पूर्व विधायक हीना कावरे के बयान का समर्थन करते हुए कहा कि जब संगठन अध्यक्ष की नियुक्ति में विधायकों की ही राय को प्राथमिकता देनी थी, तो संगठन सृजन अभियान जैसी प्रक्रिया चलाने का कोई औचित्य ही नहीं था। लिल्हारे का आरोप था कि पूरा चयन “गलत तरीके” से किया गया है और इसमें कार्यकर्ताओं की भागीदारी नाम मात्र की रही।
कार्यकर्ताओं की चेतावनी
कांग्रेस नेता जुगल शर्मा ने तो यहां तक कह दिया कि यदि ज़िले में संगठन अध्यक्ष का नाम इस तरह थोपा गया तो कार्यकर्ता सहयोग नहीं करेंगे। उनका कहना था कि पार्टी केवल नाम बदलने की रस्म निभा रही है, जबकि असल में जमीनी नेताओं को कोई महत्व नहीं दिया जा रहा।
विधायकों की अनुपस्थिति ने बढ़ाए सवाल
श्रद्धांजलि सभा के दौरान एक और बड़ा सवाल तब खड़ा हुआ जब जिले का कोई भी विधायक कार्यक्रम में नहीं पहुंचा। कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि विधायक अपने क्षेत्रीय दायित्वों की अनदेखी कर केवल मुख्यमंत्री के कार्यक्रमों में उपस्थिति दर्ज कराने में व्यस्त रहते हैं। इससे यह संदेश गया कि स्थानीय कार्यकर्ताओं की भावनाओं को संगठन और नेतृत्व दोनों ही गंभीरता से नहीं ले रहे।
आंतरिक कलह पर बढ़ती निगाहें
बालाघाट कांग्रेस का यह विवाद एक बार फिर से यह साबित कर रहा है कि पार्टी के भीतर गुटबाज़ी और असंतोष थमने का नाम नहीं ले रहा। संजय उइके की नियुक्ति से एक ओर जहां उनके समर्थक उत्साहित हैं, वहीं दूसरी ओर विरोधी धड़ा खुलकर सामने आ गया है। जानकारों का कहना है कि यदि संगठनात्मक नियुक्तियों में पारदर्शिता और कार्यकर्ताओं की भागीदारी सुनिश्चित नहीं हुई, तो इसका असर आगामी चुनावों में कांग्रेस की स्थिति पर सीधा देखने को मिल सकता है।