अनिल अंबानी के साम्राज्य पर ED का शिकंजा: दिल्ली-मुंबई में 40 ठिकानों पर छापेमारी, 3000 करोड़ के लोन घोटाले और मनी लॉन्ड्रिंग के लगे आरोप!

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

देश की आर्थिक व्यवस्था और कॉर्पोरेट जगत में हलचल मचाने वाली बड़ी कार्रवाई में प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार 24 जुलाई को उद्योगपति अनिल अंबानी के रिलायंस ग्रुप से जुड़ी कंपनियों और परिसरों पर व्यापक स्तर पर छापेमारी की। यह कार्रवाई यस बैंक द्वारा अनिल अंबानी समूह की कंपनियों को दिए गए लगभग 3,000 करोड़ रुपये के लोन के कथित दुरुपयोग और मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी जांच के तहत की गई। बताया जा रहा है कि ईडी की टीमों ने दिल्ली और मुंबई में 40 से अधिक स्थानों पर एक साथ दबिश दी।

यह कार्रवाई भारतीय स्टेट बैंक (SBI) द्वारा अनिल अंबानी और उनकी कंपनी रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCom) को ‘धोखाधड़ी’ घोषित किए जाने के कुछ ही दिन बाद हुई है। सूत्रों के अनुसार, यह छापेमारी धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत की गई और इसमें उन कंपनियों और फर्मों को टारगेट किया गया, जो रिलायंस अनिल अंबानी समूह (RAAGA) से जुड़ी हैं।

जांच एजेंसियों का कहना है कि यह घोटाला एक “पूर्व नियोजित और व्यवस्थित” आर्थिक अपराध प्रतीत होता है, जिसमें बैंकों, निवेशकों और अन्य वित्तीय संस्थानों को गुमराह कर फर्जी कंपनियों के माध्यम से फंड डायवर्ट किए गए। कई कंपनियों के नामों में समानता, एक ही पते और डायरेक्टर्स की पुनरावृत्ति जैसे तथ्य सामने आए हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि इस नेटवर्क का उद्देश्य जानबूझकर धोखाधड़ी करना था।

रिपोर्ट के अनुसार, जिन कंपनियों को लोन दिया गया, उनमें से कई या तो फर्जी थीं या वित्तीय रूप से बेहद कमजोर थीं। लोन की रकम को समूह की दूसरी कंपनियों में ट्रांसफर किया गया, जिससे मनी ट्रेल का विश्लेषण करना मुश्किल हो गया। जांच के दौरान यह भी सामने आया है कि यस बैंक के कुछ वरिष्ठ अधिकारियों को भी रिश्वत दी गई हो सकती है, ताकि लोन की स्वीकृति और वितरण प्रक्रिया में गड़बड़ी की जा सके।

प्रवर्तन निदेशालय को इस पूरे घोटाले की जानकारी सीबीआई की दो प्राथमिकियों के अलावा सेबी, नेशनल हाउसिंग बैंक, बैंक ऑफ बड़ौदा और नेशनल फाइनेंशियल रिपोर्टिंग अथॉरिटी (NFRA) जैसी नियामक और वित्तीय संस्थाओं से मिली शिकायतों और सूचनाओं के आधार पर मिली।

ईडी की जांच में रिलायंस होम फाइनेंस लिमिटेड और रिलायंस कॉमर्शियल फाइनेंस लिमिटेड की भूमिका भी संदिग्ध पाई गई है। विशेष रूप से, रिलायंस होम फाइनेंस की कॉरपोरेट लोन बुक में वित्त वर्ष 2017-18 से 2018-19 के बीच असामान्य बढ़ोतरी देखी गई — यह 3,742 करोड़ से बढ़कर सीधे 8,670 करोड़ रुपये तक पहुंच गई।

छापेमारी की खबर के बाद अनिल अंबानी की दो प्रमुख कंपनियों — रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर और रिलायंस पावर — के शेयरों में 5% तक की गिरावट दर्ज की गई, जिससे निवेशकों में चिंता का माहौल बन गया है। यह भी उल्लेखनीय है कि अंबानी के खिलाफ पर्सनल इनसॉल्वेंसी की कार्रवाई भी नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT), मुंबई में चल रही है।

फिलहाल ईडी इस पूरे घोटाले के मनी ट्रेल, लोन वितरण की प्रक्रियाओं, संबंधित कंपनियों के लेखा-जोखा और फंड के अंतिम इस्तेमाल की बारीकी से जांच कर रही है। जांच पूरी होते ही अनिल अंबानी समूह के खिलाफ औपचारिक कानूनी कार्रवाई की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता। आने वाले दिनों में यह मामला भारतीय कॉरपोरेट इतिहास के सबसे बड़े आर्थिक घोटालों में से एक के रूप में दर्ज हो सकता है।

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