जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्यप्रदेश में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) को 27% आरक्षण देने के मुद्दे पर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनवाई होने जा रही है। दरअसल, कमलनाथ सरकार ने वर्ष 2019 में विधानसभा में कानून पारित कर ओबीसी के लिए आरक्षण को 14% से बढ़ाकर 27% करने का प्रावधान किया था। इस विधेयक के पारित होते ही मध्यप्रदेश में कुल आरक्षण की सीमा 63% तक पहुँच गई, जो सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई 50% सीमा से काफी अधिक है। इस फैसले को प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने सामाजिक न्याय और ओबीसी वर्ग के हक में ऐतिहासिक बताया था, लेकिन इसी के साथ इस पर कानूनी विवाद भी शुरू हो गया।
इसके बाद मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय ने पीजी मेडिकल कोर्स में इस बढ़े हुए ओबीसी आरक्षण को लागू करने पर रोक लगा दी। इसके खिलाफ कई याचिकाएं दाखिल हुईं, और मामला धीरे-धीरे सुप्रीम कोर्ट तक पहुँच गया। वर्ष 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की सभी लंबित याचिकाओं को हाईकोर्ट से अपने पास ट्रांसफर कर लिया, ताकि पूरे प्रकरण पर एक साथ सुनवाई हो सके। तब से लेकर अब तक राज्य में सरकारी भर्तियाँ और प्रवेश प्रक्रियाएँ पुराने 87:13 फार्मूले पर ही चल रही हैं, जिसमें 87% अनारक्षित व अन्य कोटा और मात्र 13% ओबीसी आरक्षण लागू है।
बीते 25 जून को सुप्रीम कोर्ट ने मप्र सरकार से कहा था कि वह 4 जुलाई तक जवाब दाखिल करे और यह स्पष्ट करे कि 27% ओबीसी आरक्षण लागू होने पर क्या आरक्षण की कुल सीमा 50% को पार कर जाएगी या नहीं। राज्य सरकार ने इसके लिए कानूनी और सांविधानिक तर्क जुटाए हैं और आज सुप्रीम कोर्ट के समक्ष अपना पक्ष रखेगी। सरकार की दलील यह भी रहेगी कि ओबीसी की जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देना उनका संवैधानिक हक है और इससे सामाजिक न्याय की अवधारणा को मजबूती मिलती है।
उधर ओबीसी वर्ग के याचिकाकर्ता सुप्रीम कोर्ट से अपील कर रहे हैं कि विधानसभा द्वारा पारित इस कानून को जल्द लागू किया जाए ताकि ओबीसी समाज को वास्तविक लाभ मिल सके। उनका कहना है कि संविधान में कहीं भी 50% की सीमा को सख्ती से न मानने की व्यवस्था भी है, और विशेष परिस्थितियों में राज्यों को यह अधिकार है कि वे सामाजिक व शैक्षणिक पिछड़ेपन को दूर करने के लिए यह सीमा पार कर सकते हैं।
आज सुप्रीम कोर्ट की बेंच यह तय करेगी कि क्या इस 27% ओबीसी आरक्षण को तत्काल प्रभाव से लागू किया जाए या नहीं। साथ ही यह भी देखा जाएगा कि क्या इससे संविधान की 50% की आरक्षण सीमा का उल्लंघन होता है। यह फैसला न केवल मध्यप्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए नजीर बन सकता है, क्योंकि ओबीसी आरक्षण को लेकर देश के कई राज्यों में लंबे समय से बहस और कानूनी प्रक्रियाएँ जारी हैं।
फिलहाल प्रदेश में हजारों ओबीसी अभ्यर्थी सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिससे उनकी नौकरी और उच्च शिक्षा में आरक्षण की राह प्रशस्त हो सके। माना जा रहा है कि आज की सुनवाई इस पूरे मामले की दिशा तय कर सकती है और ओबीसी आरक्षण पर लंबे समय से जारी असमंजस को खत्म करने में निर्णायक साबित होगी।