जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
बहुजन समाज पार्टी (बसपा) में नेतृत्व को लेकर एक बार फिर से बड़ी हलचल मच गई है। लंबे वक्त तक असमंजस और अंदरूनी उठापटक के बाद बसपा सुप्रीमो मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का “चीफ नेशनल कोऑर्डिनेटर” बना दिया है। यह पद न केवल नया है, बल्कि यह पार्टी में मायावती के बाद सबसे अहम जिम्मेदारी माना जा रहा है। यानी अब पार्टी में दूसरा सबसे बड़ा चेहरा आकाश आनंद होंगे।
लेकिन यह पद सिर्फ एक जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि पार्टी के अंदर गहराई से चल रही सियासी उठापटक और दलित वोटबैंक की लड़ाई का संकेत भी है। दिलचस्प बात यह है कि यह वही आकाश आनंद हैं, जिन्हें कुछ ही महीनों पहले पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था। मायावती ने खुद सार्वजनिक मंच से यह बयान दिया था कि “मेरे जीते-जी कोई उत्तराधिकारी नहीं होगा।” लेकिन अब वही आकाश न केवल वापस आए हैं, बल्कि सबसे ताकतवर पद पर काबिज हो गए हैं।
बसपा के इस नाटकीय घटनाक्रम के केंद्र में एक ओर आकाश की लगातार उठती-गिरती राजनीतिक हैसियत है, और दूसरी ओर मायावती की रणनीतिक सोच, जिसमें अब वह फिर से युवा चेहरों को सामने लाकर पार्टी को दलित युवाओं में लोकप्रिय बनाना चाहती हैं। खासकर ऐसे समय में जब चंद्रशेखर ‘आजाद’ जैसी उभरती ताकतें उनके पारंपरिक वोट बैंक में सेंध लगा रही हैं।
दिल्ली में हुई पार्टी की ऑल इंडिया मीटिंग में मायावती ने आकाश आनंद को सबके सामने जिम्मेदारी सौंपी और कहा कि उन्हें पार्टी के भविष्य के कार्यक्रमों की अगुवाई का दायित्व दिया गया है। मायावती ने भरोसा जताया कि इस बार आकाश पूरी सावधानी और मिशनरी भावना से काम करेंगे।
लेकिन ये वही आकाश आनंद हैं जिन्हें पिछले 16 महीनों में मायावती ने कई बार जिम्मेदारियां दीं, और उतनी ही बार छीन भी लीं।
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10 दिसंबर 2023 को उन्हें पहली बार उत्तराधिकारी घोषित किया गया।
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7 मई 2024 को एक बयानबाजी के चलते सभी पद छीन लिए गए।
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23 जून 2024 को दोबारा उन्हें नेशनल कोऑर्डिनेटर बनाया गया।
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2 मार्च 2025 को मायावती ने फिर से कह दिया – “कोई उत्तराधिकारी नहीं है।”
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3 मार्च को उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया गया।
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और अब, 13 अप्रैल को माफी के बाद और 35 दिन बीतने के बाद, आकाश को पार्टी में नंबर-2 की पोजिशन पर बैठा दिया गया है।
मायावती के इस फैसले के कई राजनीतिक मायने निकाले जा रहे हैं।
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दलित युवाओं को जोड़ने का प्रयास – चंद्रशेखर आजाद की लोकप्रियता ने बसपा के पारंपरिक जनाधार को कमजोर किया है।
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राजनीतिक विरासत को मजबूत करना – आकाश युवाओं में लोकप्रिय हैं, पढ़े-लिखे हैं, और मायावती उन्हें आगे लाकर संगठन की पकड़ फिर से मजबूत करना चाहती हैं।
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कांग्रेस और सपा को टक्कर देना – कांग्रेस की दलित-पिछड़ा नीति और सपा की सोशल इंजीनियरिंग की काट के तौर पर आकाश को खड़ा किया गया है।
दिल्ली की मीटिंग में 3 बड़े फैसले लिए गए —
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बिहार चुनाव में अकेले लड़ने का ऐलान, सभी 240 सीटों पर बसपा चुनाव लड़ेगी।
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उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड पर विशेष फोकस, कार्यकर्ताओं को तन-मन-धन से जुटने का निर्देश।
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बहुजन वालंटियर फोर्स (BVF) को दोबारा एक्टिव करना, ताकि दलित उत्पीड़न पर तुरंत एक्शन हो सके।
साथ ही, मायावती ने ऑपरेशन सिंदूर पर सेना की तारीफ की, और पाकिस्तान की परमाणु धमकियों को दरकिनार करते हुए कहा कि भारत को किसी तीसरे पक्ष के दखल की जरूरत नहीं।
अब सवाल यह है कि क्या आकाश आनंद इस बार मायावती के भरोसे पर खरे उतरेंगे? क्या बसपा की डूबती नैया को वह फिर से पार लगा पाएंगे?
क्योंकि पार्टी की स्थिति अब चिंताजनक है —
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2007 में 206 सीटों वाली बसपा अब महज़ 1 विधायक तक सिमट गई है।
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2024 के लोकसभा चुनाव में पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई।
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दिल्ली, महाराष्ट्र, झारखंड जैसे राज्यों में पार्टी का प्रदर्शन बेहद कमजोर रहा।
अब बसपा का लक्ष्य है – यूपी में 2007 की तरह वापसी करना, और इसके लिए मायावती ने फिर से दांव चला है – अपना भरोसा, अपना उत्तराधिकारी, और शायद भविष्य – आकाश आनंद।