क्या बचेगी मंत्री की कुर्सी? “आतंकियों की बहन” वाले बयान से हिली राजनीति, मंत्री विजय शाह पर FIR; लेकिन अब तक इस्तीफा नहीं! क्यों?”

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

12 मई को मध्यप्रदेश के आदिवासी बहुल महू के मानपुर थाना क्षेत्र के रायकुंडा गांव में हलमा कार्यक्रम के दौरान जो हुआ, उसने राज्य की राजनीति को हिला कर रख दिया। जनजातीय कार्य मंत्री कुंवर विजय शाह ने ऑपरेशन सिंदूर का जिक्र करते हुए, बिना नाम लिए कर्नल सोफिया कुरैशी को आतंकवादियों की बहन बता दिया। इस बयान के बाद एक तरफ सोशल मीडिया पर भूचाल आया, तो दूसरी ओर बीजेपी के भीतर भी हलचल मच गई।

बयान पर बवाल मचते ही बीजेपी संगठन हरकत में आया। पार्टी के संगठन महामंत्री ने खुद मंत्री विजय शाह को तलब किया और फटकार लगाई। दबाव के बीच विजय शाह ने माफी मांगी और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के बंगले पर जाकर मुलाकात की। लेकिन माफी के बावजूद मामला थमा नहीं, हाईकोर्ट ने स्वत: संज्ञान लेते हुए FIR दर्ज करने का आदेश दिया। और अब मंत्री शाह पर कानूनी शिकंजा कस चुका है।

प्रदेशभर में कांग्रेस और विपक्षी दल इस मामले को लेकर सड़कों पर उतर आए हैं। भोपाल में कांग्रेस विधायकों ने राज्यपाल से मिलकर मंत्री को बर्खास्त करने की मांग की, और राजभवन के बाहर धरना भी दिया। वहीं दूसरी ओर, खुद मंत्री विजय शाह कहीं भी सार्वजनिक रूप से नजर नहीं आए — न इस्तीफा, न कोई स्पष्टीकरण।

तो आखिर क्या वजह है कि इतना बड़ा विवाद खड़ा होने के बाद भी बीजेपी मंत्री शाह से इस्तीफा नहीं ले पा रही?

दरअसल, एक मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इसके पीछे चौंकाने वाली कहानी सामने आई है। सूत्रों के मुताबिक जब मामला तूल पकड़ गया और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे का ट्वीट आया, तो बीजेपी के संगठन और सरकार ने शाह को चुपचाप इस्तीफा देने की सलाह दी। लेकिन विजय शाह ने साफ इनकार कर दिया। उनका कहना था कि “मैंने माफी मांग ली है, भावना गलत नहीं थी, अब कोई इस्तीफा चाहता है तो बताए कौन जिम्मेदारी लेगा मेरे राजनीतिक भविष्य की?”

शाह का यह तेवर बीजेपी नेतृत्व के लिए नई मुश्किल बन गया। वह अब अपने इस्तीफे के बदले केंद्र से गारंटी चाहते हैं कि आगे उनका राजनीतिक भविष्य सुरक्षित रहेगा। इतना ही नहीं, वे सीधे केंद्रीय नेतृत्व से संवाद चाहते हैं — न कि प्रदेश संगठन से।

इस बीच, बीजेपी की रणनीति अब साफ होती दिख रही है — पार्टी सुप्रीम कोर्ट की 19 मई की सुनवाई का इंतजार कर रही है। अगर कोर्ट से राहत नहीं मिली, तो केन्द्रीय नेतृत्व से निर्देश मिलने के बाद ही अगला कदम उठाया जाएगा। यानी प्रदेश बीजेपी ने गेंद केंद्र के पाले में डाल दी है।

वहीं, डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा और सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते के बयानों ने मामले को थोड़ा संतुलित जरूर किया, लेकिन इनकी भी भाषा को लेकर विवाद हुआ है। देवड़ा ने सफाई दी कि उनका बयान तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया, जबकि कुलस्ते की जुबान फिसल गई और उन्होंने “हमारे आतंकवादी” जैसे शब्द कह दिए। अब बीजेपी इस मुश्किल में फंसी है कि यदि विजय शाह पर कार्रवाई की जाती है, तो फिर इन अन्य नेताओं पर भी कोई न कोई स्टैंड लेना पड़ेगा।

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