जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भोपाल और इंदौर सहित मध्यप्रदेश के कई इलाकों में 4 मई को हुई NEET UG 2025 की परीक्षा के दौरान एक असाधारण और चौंकाने वाली घटना ने छात्रों के भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। अब मामला हाईकोर्ट तक पहुंच गया है और एमपी हाईकोर्ट की इंदौर बेंच ने इस परीक्षा के परिणाम पर अंतरिम रोक लगा दी है। यह फैसला तब आया जब अदालत को बताया गया कि परीक्षा के दौरान तेज़ बारिश और 120 किमी/घंटा की रफ्तार से आई आंधी के कारण कई परीक्षा केंद्रों की बिजली चली गई, जिससे सैकड़ों छात्र अंधेरे में फंसे रह गए और ठीक से पेपर भी नहीं पढ़ पाए।
इंदौर शहर में बनाए गए 49 परीक्षा केंद्रों में से करीब 11 सेंटर ऐसे थे जहां बिजली पूरी तरह गुल हो गई। वहां मौजूद करीब 600 छात्रों की परीक्षा सीधे तौर पर प्रभावित हुई। छात्रों को मोमबत्ती और मोबाइल की टॉर्च की रोशनी में पेपर देना पड़ा। कई छात्रों ने यह भी बताया कि प्रश्नपत्र तक ठीक से दिखाई नहीं दे रहे थे, और समय की भी भारी किल्लत रही।
यह पहला मौका था जब NTA ने इंदौर के सरकारी स्कूलों को परीक्षा केंद्र बनाया था, लेकिन वहाँ बैकअप पावर का कोई इंतजाम नहीं था। छात्रों और उनके परिजनों ने परीक्षा के बाद हंगामा भी किया और भ्रष्ट और असंवेदनशील व्यवस्थाओं के खिलाफ गुस्सा जताया। इस बीच उज्जैन के शासकीय माधव महाविद्यालय में भी इसी तरह की लापरवाही सामने आई, जहां बिजली गुल हो जाने के बाद कुछ कमरों में तो छात्रों को अतिरिक्त समय दिया गया, लेकिन कुछ कमरों में बैठे छात्रों को वह समय नहीं मिला। इससे परीक्षा की निष्पक्षता पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं।
इसी वजह से हाईकोर्ट ने NEET UG के परिणाम पर अंतरिम रोक लगा दी है और NTA, बिजली कंपनी और परीक्षा केंद्रों को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि जब तक इस मामले में अंतिम सुनवाई नहीं हो जाती, रिजल्ट जारी नहीं किया जाएगा। अब सभी संबंधित पक्षों को 30 जून तक कोर्ट में जवाब पेश करना होगा।
इस पूरे घटनाक्रम ने लाखों छात्रों के भविष्य को लेकर गंभीर चिंता पैदा कर दी है। यह केवल इंदौर या उज्जैन की समस्या नहीं है — बल्कि पूरे देशभर में यह बहस छिड़ गई है कि अगर एक परीक्षा, जो मेडिकल और स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रवेश का एकमात्र रास्ता है, इतनी लापरवाही और असावधानी से कराई जाती है, तो छात्रों के सपनों और मेहनत का क्या होगा?विशेषज्ञों की मानें तो ऐसे मामलों में NTA को वैकल्पिक परीक्षा की व्यवस्था करनी चाहिए, जैसा कि 2016 में ओडिशा में चक्रवात के बाद हुआ था। लेकिन अब तक NTA की तरफ से कोई स्पष्ट बयान या कार्ययोजना सामने नहीं आई है।