जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
मध्य प्रदेश के मंत्री विजय शाह की कर्नल सोफिया कुरैशी पर विवादित टिप्पणी ने तूल पकड़ लिया है। हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों ने इस पर गंभीर चिंता जताई है। अब यह मामला केवल एक बयान का नहीं रहा, बल्कि देश की एकता, अखंडता और सामाजिक सौहार्द के लिए खतरे की घंटी बन गया है।
हाईकोर्ट की डबल बेंच ने इस पूरे प्रकरण पर बेहद कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि मंत्री के खिलाफ जो एफआईआर दर्ज की गई है, वह सिर्फ “खानापूर्ति” के लिए की गई है। कोर्ट ने एफआईआर को देखकर यह तक कह दिया कि यह ऐसे तरीके से दर्ज की गई है कि अगर इसे चुनौती दी जाए तो यह रद्द की जा सके। हाईकोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि एफआईआर में भौतिक तथ्यों की गंभीर कमी है और इसमें मंत्री के कृत्य का स्पष्ट उल्लेख ही नहीं किया गया, जिससे उन पर लगे आरोप सिद्ध हो सकें।
अब हाईकोर्ट खुद इस पूरे मामले की निगरानी करेगा, ताकि जांच किसी भी राजनीतिक दबाव में प्रभावित न हो। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यह कोई हत्या का मामला नहीं, बल्कि एक संवेदनशील भाषण का मामला है, जिसमें लंबी जांच की जरूरत नहीं है।
मंत्री विजय शाह पर आरोप है कि उन्होंने ऑपरेशन सिंदूर के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में मौजूद भारतीय सेना की महिला अफसर कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर आपत्तिजनक और सांप्रदायिक टिप्पणी की थी। उन्होंने उन्हें “आतंकियों की बहन” कह डाला। हाईकोर्ट ने इसे भारतीय दंड संहिता की धारा 152 और BNS की धारा 192 के तहत गंभीर आपराधिक कृत्य करार दिया है, जो भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता को खतरे में डालने के साथ-साथ सांप्रदायिक तनाव फैलाने वाला है।
14 मई को हाईकोर्ट ने स्पष्ट निर्देश देते हुए कहा था कि यदि मंत्री के खिलाफ FIR दर्ज नहीं हुई तो DGP पर अवमानना की कार्रवाई होगी। इसके बाद ही मानपुर थाने में बुधवार शाम FIR दर्ज की गई, लेकिन उसके बाद कोर्ट ने उसे भी अधूरी और कमजोर बताते हुए अपनी सख्ती और बढ़ा दी। अब कोर्ट का 14 मई का आदेश एफआईआर के पैरा 12 में जोड़ने का आदेश दिया गया है, ताकि कानूनी प्रक्रिया मजबूत हो।
इस बीच, सुप्रीम कोर्ट ने भी मंत्री की याचिका खारिज करते हुए उन्हें फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि मंत्री जैसे जिम्मेदार पद पर बैठे व्यक्ति से उम्मीद होती है कि वह संयमित भाषा का प्रयोग करे। कोर्ट ने सवाल किया कि आप कैसे बयान दे रहे हैं, आपको तो हालातों की गंभीरता समझनी चाहिए थी।
मंत्री विजय शाह ने अब माफी तो मांग ली है, लेकिन उनकी मुश्किलें कम होती नहीं दिख रहीं। उन्होंने एक वीडियो संदेश जारी कर कहा, “मैं शर्मिंदा हूं, दुखी दिल से माफी चाहता हूं। मेरी मंशा गलत नहीं थी, लेकिन कुछ शब्द जुबान से निकल गए जिन पर मुझे पछतावा है।”
हालांकि, इस माफी के बावजूद मंत्री इस्तीफा नहीं दे रहे हैं। भाजपा के अंदर भी इस मुद्दे पर गहमागहमी है। बुधवार को सीएम हाउस में बीजेपी के शीर्ष नेताओं की बैठक हुई, जिसमें फैसला लिया गया कि विजय शाह फिलहाल इस्तीफा नहीं देंगे। उन्होंने पार्टी से कोर्ट में अपना पक्ष रखने का अवसर देने की मांग की है।
कांग्रेस ने इस मुद्दे पर हमलावर रुख अख्तियार करते हुए विजय शाह को तत्काल पार्टी से बाहर निकालने की मांग की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने कहा कि जिस मंत्री ने देश की सेना और महिला अफसर का अपमान किया है, उसे भाजपा में एक मिनट भी रहने का अधिकार नहीं है।
यह मामला अब केवल एक बयान या राजनीतिक विवाद तक सीमित नहीं रह गया है। यह संविधान, न्यायपालिका और सामाजिक एकता की परीक्षा का क्षण बन चुका है। जिस तरह कोर्ट ने स्वत: संज्ञान लिया, जिस प्रकार देश की सबसे बड़ी अदालत ने मंत्री को लताड़ लगाई, और जिस तरह पूरे समाज में आक्रोश है — वह इस बात का प्रमाण है कि अब शब्दों से भी कानून की सीमा लांघी जा सकती है, और उसके लिए जवाबदेही तय करना जरूरी है।