13 मौतें, बर्बाद परिवार, और अब पुलिस की लाठी, मुख्यमंत्री से मिलने जा रहे हरदा ब्लास्ट पीड़ितों पर पुलिस ने किया बल प्रयोग; बुजुर्ग, महिला और बच्चों को बस में बैठाकर वापस हरदा भेजा

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जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:

6 फरवरी 2024 को मध्य प्रदेश के हरदा जिले में एक भयानक पटाखा फैक्ट्री ब्लास्ट ने 13 लोगों की जान ले ली और सैकड़ों लोगों को जख्मी कर दिया। दर्जनों परिवार उजड़ गए, घर मलबे में तब्दील हो गए, और लोगों की जिंदगी पलभर में वीरान हो गई। इस हादसे को अब लगभग दो महीने हो चुके हैं, लेकिन पीड़ित परिवार आज भी न्याय और उचित मुआवजे के लिए भटक रहे हैं। जब उम्मीदें सरकारी दफ्तरों से टूटने लगीं, तो उन्होंने अपने हक की लड़ाई के लिए भोपाल की ओर 150 किलोमीटर की न्याय यात्रा शुरू की, ताकि मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी तकलीफ बयां कर सकें।

लेकिन मंगलवार को जब ये पीड़ित परिवार भोपाल के मिसरोद इलाके में पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें रोक लिया। पीड़ितों के अनुसार, जब उन्होंने आगे बढ़ने की कोशिश की तो पुलिस ने बल प्रयोग किया, बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों तक को लाठी से पीटा गया और उन्हें जबरन एक बस में बैठाकर हरदा वापस भेज दिया गया। कई लोगों को गंभीर चोटें आई हैं। वहीं, पुलिस ने लाठीचार्ज से इनकार किया और कहा कि पीड़ितों को “सुरक्षित” वापस भेजा गया है।

एक पीड़ित देवी सिंह ने बताया, “हमें, हमारे बच्चों और पत्नी को बहुत मारा गया। चोटें गंभीर हैं। हम बस मुख्यमंत्री से मिलना चाहते थे, अपनी पीड़ा बताना चाहते थे, लेकिन हमें सड़क से हटा दिया गया।” पीड़ितों का कहना है कि प्रशासन न केवल उनकी आवाज दबा रहा है, बल्कि उन्हें बार-बार केवल आश्वासन देकर टरकाया जा रहा है।

इस घटना पर पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण यादव ने भी सोशल मीडिया पर सवाल उठाए और लिखा, “क्या मध्य प्रदेश में तानाशाही चल रही है, जहां आमजन अपनी बात मुख्यमंत्री से भी नहीं कह सकते?” उन्होंने इस पूरे घटनाक्रम का वीडियो भी साझा किया, जो अब वायरल हो चुका है।

बता दें, ब्लास्ट के बाद से पीड़ितों का जीवन पूरी तरह से बदल गया है। जिन घरों में कभी चूल्हा जलता था, अब वो मलबे में तब्दील हो चुके हैं। महिलाएं बच्चों को गोद में लेकर शेल्टर हाउस में रह रही हैं, जहां सुविधाएं नाममात्र की हैं। जिन मजदूरों के घर तबाह हुए, उनके पास दोबारा घर बनाने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। “एनजीटी कोर्ट” द्वारा निर्धारित मुआवजा बहुत कम है और उसमें भी शासन ने अपनी ओर से दी गई सहायता राशि काट ली है, ऐसा आरोप पीड़ितों का है।

उनका कहना है कि मकानों का सर्वे कर प्रशासन ने यह कहा था कि ये घर अब रहने लायक नहीं हैं। लेकिन न तो पुनर्वास मिला, न पर्याप्त मुआवजा। पीड़ितों की मांग है कि उन्हें 1500 रुपये प्रति वर्ग फीट के हिसाब से मुआवजा दिया जाए, ताकि वे दोबारा एक सम्मानजनक जीवन शुरू कर सकें।

14 महीने में कलेक्टर ने उन्हें 42 बार बुलाकर केवल आश्वासन दिया, लेकिन ज़मीनी हकीकत अब भी वही है—घर उजड़े हैं, ज़िंदगी संघर्ष में है, और इंसाफ दूर है।

एक और दुखद विडंबना यह है कि हरदा ब्लास्ट में बचे कुछ मजदूर गुजरात के बनासकांठा में जाकर काम करने लगे थे और हाल ही में वहां हुए एक पटाखा ब्लास्ट में भी कई लोग मारे गए। ये वही मजदूर थे जो पहले हरदा में काम करते थे। लोगो का कहना है की हम गरीब मजदूर लोग हैं कलेक्टर की रिपोर्ट के अनुसार हमारा 100 प्रतिशत नुकसान हुआ है हम शेल्टर हाउस में रह रहे हैं और एनजीटी के मुआवजे के बाद हमें वहां से भी बाहर निकाला जा रहा है लेकिन जितना हमें मुआवजा मिला है उसमें घर बनाना नामुमकिन है।

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