जनतंत्र, मध्यप्रदेश, श्रुति घुरैया:
भोपाल गैस त्रासदी को 40 साल हो गए, लेकिन इसके जख्म अब भी ताजे हैं। चार दशक पहले, 2-3 दिसंबर 1984 की रात, यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट जैसी जहरीली गैस का रिसाव हुआ, जिसने 5,479 लोगों की जान ले ली और 5 लाख से ज्यादा लोगों को गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं और विकलांगताओं से जूझने पर मजबूर कर दिया।
अब, 40 साल बाद, इस त्रासदी से जुड़े 377 मीट्रिक टन खतरनाक कचरे को भोपाल से पीथमपुर तक सुरक्षित पहुंचाने की प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। नए साल की रात, 1 जनवरी को 250 किलोमीटर लंबे ग्रीन कॉरिडोर के माध्यम से इस जहरीले कचरे को 12 विशेष कंटेनरों में लेकर जाया गया। इस प्रक्रिया में एंबुलेंस, फायर ब्रिगेड और एक दर्जन से ज्यादा वरिष्ठ अधिकारियों की टीम शामिल रही।
बता दें, कचरे को पीथमपुर की औद्योगिक इकाई में विशेष सावधानी के साथ नष्ट किया जाएगा, जिसमें तीन महीने लगने का अनुमान है। जो कर्मचारी कचरा निकालने में शामिल थे, उन्हें पीपीई किट पहनाकर फैक्ट्री में भेजा गया। अंदर जाने का समय केवल आधे घंटे तक सीमित रखा गया, और बारी-बारी से काम किया गया। यहां तक कि उनके खाने-पीने का कचरा भी विशेष कंटेनरों में डाला गया।
जानकारी के लिए आपको बता दें, इस पूरे घटनाक्रम को लेकर एक याचिका भी हाईकोर्ट इंदौर में दायर कर दी गई है, जिसमें भोपाल यूनियन कार्बाइड का जहरीला कचरा पीथमपुर में न जलाए जाने की गुहार लगाई गई है। हालांकि इस पर अभी सुनवाई नहीं हो सकी है। उक्त याचिका में कहा गया है कि इस प्रक्रिया से इंदौर और पीथमपुर क्षेत्र में कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है। इस मामले को लेकर महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज के पूर्व छात्र संघ के अध्यक्ष डॉ. संजय लोंढे, ऑन्कोलॉजिस्ट एसएस नायर और विनीता कोठारी जैसे विशेषज्ञों ने राज्य सरकार की तैयारियों पर सवाल उठाए हैं और लोगों के स्वास्थ्य को लेकर गंभीर चिंता जताई है।